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Uniform Civil Code india 2024 | what is UCC

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Uniform Civil Code जानने से पहले हम ये जान ले की कानून क्या हैं ?

कानून नियमों (Rules)और विधियों का एक समूह होता हैं जो की किसी विशिष्ट क्षेत्र में लागू होता है और इसका प्राथमिक उद्देश्य आम लोगों को न्याय प्रदान करना होता है।

कानून हम दो श्रेणियों में बांट सकते हैं।

  1. आपराधिक कानून
  2.  सिविल कानून 

1.अपराधिक कानून :- इस तरह के कानूनों में मुख्य तौर पर समाज के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने की कोशिश की जाती है। इस तरह की कानूनों की परिधि में मुख्य तौर पर हत्या, रेप,आगजनी,डकैती हमले जैसी चीजों को हमले जैसी अपराधों को शामिल किया जाता है।

2. सिविल कानून :- दो या फिर दो से अधिक समूहों के बीच, या दो या फिर दो से अधिक व्यक्ति के बीच विवादों को सुलझाने की कोशिश की जाती है और इस तरह की कानूनों में मुख्य तौर पर संपत्ति, धन, आवास, तलाक बच्चों की गोद लेने और उनकी कस्टडी विवाह, व्यक्ति की विवाह  या लोगों की विवाह से संबंधित मामलो को शामिल किया जाता हैं ।

1.1 आपराधिक कानून:- भारत में अपराधिक कानून सभी पर एक समान लागू होते हैं, जाहे वो किसी भी धर्म से क्यों ना हो।

2.2 सिविल कानून:-जबकि सिविल कानून अधिकांश विषयों में भारत में सिविल कानूनों में समानता देखने को नहीं मिलती, एक रुपता देखने को नहीं मिलती हैं। धर्म और आस्था के आधार पर बदलते रहते हैं यानी आपके धर्म के आधार पर यह तय किया जाएगा कि आपके ऊपर कौन सा कानून लागू होगा। उदाहरण के लिए अगर आप हिंदू है तो आप पर अलग तरह के कानून लागू होंगे और अगर आप मुस्लिम है तो आप पर अलग तरह के कानून लागू होंगे।

 हालांकि सिविल कानून के मामलों में भी कुछ ऐसे मामले हैं जिस पर एक तरह के कानून बनाए गए हैं। जैसे कि कॉन्ट्रैक्ट के लिए भारत सरकार द्वारा भारतीय अनुबंध अधिनियम को लागू किया गया हैं, इसके इसके अलावा साझेदारी यानी पार्टनरशिप भारत सरकार ने भारतीय साझेदारी अधिनियम को लागू किया हैं। लेकिन ऐसे कुछ चुनिंदा ही मामले हैं।

अधिकांश मामले ऐसे ही हैं जिनमे नियमों का निर्धारण धर्म के आधार पर किया जाता हैं। हिन्दुओं के लिए विवाह, तलाक, बच्चे गोद लेने के लिए अलग कानून लागू होते हैं। मुस्लिमों के लिए विवाह,तलाक,बच्चे गोद लेने और विरासत के मामले में अलग तरह कानून लागू होते हैं।

अधिकांश सिविल मामलों में भारत में धर्म ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता हैं।

Uniform Civil Code क्या हैं | what is uniform civil code ?

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आइए एक दम सरल भाषा में समझते हैं, समान नागरिक संहिता का प्राथमिक उद्देश्य है  देश में एक ऐसे कानून का निर्माण करना है जो विवाह, तलाक,विरासत, गोद लेने जैसे मामलो पर सभी धर्म के लोगों पर एक जैसे समान रूप से लागू होता हो।

यानी इस पे धार्मिक ग्रंथो के हस्तक्षेप को धार्मिक ग्रंथो की जो अब तक पहुंच बानी हुई हैं उस पहुंच को कम करने की कोशिश की जाती हैं Uniform Civil code के माध्यम से

इसके अलावा इस तरह के कानून के माध्यम से, ना केवल धर्मो के बीच समानता सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है बल्कि Uniform Civil Code के माध्यम से धर्मों के अंदर भी महिलाओ और पुरुषो के बीच समानता लाने की प्रयास किया जाता हैं।

Uniform Civil Code का इतिहास क्या कहता हैं ?

  • law commission of india uniform civil code

भारत में इसकीउत्पति मुख्य तौर पर औपनिवेशिक काल के दौरान हुई थी। ब्रिटिश काल के दौरान तब हुई थी 1835 में ब्रिटिश सरकार द्वारा इस संबंध में एक रिपोर्ट पेश की गई थी.

इस रिपोर्ट में मुख्य तौर पर अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित कानूनों में एकरूपता लाने, उन कानूनों को एक जैसा बनाने पर जोर दिया गया।

हलाकि इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया था की हिंदू और मुस्लिमो के जो व्यक्तिगत कानूनों (personal laws) उन कानूनों कोे इस एकरूपता के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।

इसके बाद सन 1941 वो समय था जब भारत लगभग आजाद होने वाला था और ब्रिटिश काल जो ब्रिटिश सरकार थी उसका शासन काल लगभग समाप्त होने वाला था लेकिन यही वो समय भी था जब भारत में जो देश का धार्मिक ढाँचा (Religious Structure) और ज्यादा मजबूत हो और जटिल हो गया था।

इसी जटिलता को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध करने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया। इस समिति ने आजादी के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की और समिति की रिपोर्ट के आधार पर हिन्दुओं, बौद्धों, जेनों और सिखो के उनके कानूनों को संहिताकरण किया गया और इस संहितकारण के बाद हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम पारित किया गया।

हलाकि इस अधिनियम में केवल हिन्दू और उनसे संबंधित अन्य धर्मों को कवर किया गया था। इस अधिनियम के लागू होने के बावजूद देश में मुसलमानों, ईसाईयों और पारसियों के लिए पर्सनल कानून (Personal law) लागू रहे। तो इस तरह से हम कह सकते हैं की भारत में समान नागरिक सहिंता (Uniform Civil Code) का एक काफी व्यापक और काफी पुराना यस मौजूद है जिसकी शुरुआत 1835 से शुरू होतीं हैं ।

समान नागरिक संहिता के संबंध में भारतीय संबिधान में क्या कहा गया हैं ?
  • भारतीय संबिधान के मुताबिक अनुच्छेद 44 राज्य, समग्र भारतीय क्षेत्र में नागरिक के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 44- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतो (Directive Principles of State Policy) का हिस्सा हैं दिलचस्प बात ये हैं की भारतीय संबिधान अनुच्छेद 37- के मुताबिक (DPSP) गैर – प्रवर्तनीय हैं।
  •  सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से न्यायपालिका के माध्यम से इन्हे लागू नहीं किया जा सकता यानी भारतीय संबिधान में समान नागरिक संहिता को लागू करने की गारंटी नहीं दी गई हैं।
Uniform Civil Code को लेकर न्यायपालिका क्या कहता हैं ?
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  • न्यायपालिका नें समय-समय पर अपने अपने तमाम तमाम निर्णय में UCC यानी Uniform Civil Code को लेकर इस पूरी औधरना लागू करने को लेकर भारत सरकार को निर्देश दिए हैं और इस औधरना को लागू करने के महत्व पर लगातार जोड़ दिया हैं।
  • उदाहरण के तौर पर साल 1985 के शाह बानो विवाद में सर्वोच्च न्यायालय नें सांसद को समान नगरिक संहिता यानी Uniform Civil Code लागू करने का आदेश दिया था।
  • इसके अलावा साल 1995 के सरला मुद्गल केस में भी जी द्विविवाह प्रथा को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को ये आदेश दिया था कि जल्द से जल्द Uniform Civil Code लागू करने का प्रयास करना चाहिए।
Uniform Civil Code भारत के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं।

इसके माध्यम से सबसे पहला संवेदनशील वर्ग का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सकेगा। जब भारत का संबिधान बन रहा था तब संबिधान सभा में भारत प्रमुख संबिधान निर्माताओं में से एक डॉ भीम राव अम्बेडकर नें संबिधान के अनुच्छेद 44 का जिक्र करते हुए कहा था।

इस पुरे अनुच्छेद का उदेश्य महिलाओ समेत अन्य संवेदनशील वर्गो सुरक्षा प्रदान करना हैं इसके अलावा इस अनुच्छेद के माध्यम से भारत में राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा देने पर भी इसके माध्यम से जोड़ दिया जा सकता है

महिलाओं को इस अनुच्छेद के माध्यम से कैसे सुरक्षा मिलेगी ।

भारत में जो भी सिविल कानून लागू हैं खास तौर पर जो धर्म के आधार पर कानून लागू किए गए हैं उनमें महिलाओ को ज्यादा अधिकार नहीं दिए गए हैं। क्योंकि भारत में प्राचीन काल से ही महिलाओ को महिलाओ के साथ हमेशा से ही भेद भाव किया जाता रहा हैं।

भारत में  जब एक समान कानून लागू होगा तो इसकी वजह से पुरुष और महिलाओ की बराबरी सुनिश्चित की दोनों को एक समान स्तर पर लाया जा सकेगा और महिलाओं को भी यथासंभव अधिकार दिए जा सकेंगे।

Uniform Civil Code के माध्य्म से कानूनों का सरलीकरण आसानी से किया जा सकेगा।

हम जानते हैं भारत में विवाह के लिए हिंदुओं पर अलग कानून लागू होते हैं मुस्लिमों पर कानून अलग कानून होते हैं ईसाईयों पर अलग कानून लागू होते हैं ।

तलाक के लिए हिन्दुओं पर अलग पारसियों पर अलग कानून है, उत्तराधिकारी बच्चों उनकी कस्टडी के लिए अलग-अलग तरह के कानून है अलग-अलग धर्मों के लिए। तो इस तरह से भारत में जो व्यक्तिगत कानून (Personal law) का जो फ्रेमवर्क है कभी जटिल हैं।

इसकी वजह से भारत में लोगों को कानून को समझने में काभी चुनौती आती है इस तरह से जब एक कानून लागू किया जायेगा तो इस के माध्यम से कानूनों को और भी ज्यादा सरलीकरण किया जा सकेगा।

व्यक्तिगत कानून देश के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं।

तमाम जितने भी विकसित देश हैं जैसे की US, UK JAPAN, AUSTRALIA इन सब देशो में व्यक्तिगत कानून की कोई भी अवधारणा लागू नहीं है। क्योंकि व्यक्तिगत कानून तर्क हीन मान्यताओं पर आधारित होते हैं।

जो समय के साथ समाज और देश के लिए बाधा उत्पन्न करते हैं। ऐसे में समान नागरिक संहिता से कुप्रथाओ समाप्त किया जा सकता है। और देश के विकास को और ज्यादा सुनिश्चित किया जा सकता है।

इसके अलावा यह भी माना जाता है कि देश में जब समान नागरिक कानून लागू होंगी तो इसकी वजह न्यायपालिका के ऊपर जो बोझ हैं, जो मामले लंबित है उनको कम किया जा सकेगा। उदाहरण के तौर पर एक एक रिपोर्ट में बताया गया था कि उच्च न्यायालयों में 4.64 मिलियन मामले जबकि जिला न्यायालयओ में 31 मिलियन मामले लंबित हैं।

Uniform Civil Code लागू करने में सरकार को क्या-क्या चुनौतियां आ सकती है ?

इस तरह की अवधारणा को संवैधानिक प्रावधानों का विरोधाभासी माना जाता है, संविधान के अनुच्छेद 25 के मुताबिक भारत में सभी नागरिकों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने का अधिकार दिया गया है।

इसके अलावा भारतीय संविधान में अनुच्छेद 26 me सभी धर्मों को अपने धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने का अधिकार दिया गया है।

ऐसे में भारत सरकार अगर Uniform Civil Code यानी समान नागरिक संहिता लागू करती है तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 अनुच्छेद 26 का उल्लंघन माना जाएगा।

अगर ऐसे में भारत सरकार Uniform Civil Code लागू करना चाहती है तो भारत के संविधान में कुछ बदलाव करने होंगे यानी संशोधन करने होंगे जो कि सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

इसके लिए एक चुनौती और भी है देश के विविधता के लिए खतरा माना जाता है। हम जानते हैं कि भारत में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं जिनकी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं हैं और अलग अलग सिद्धांत है।

ऐसे में इन सभी को एक ही दृष्टिकोण से देखने से जाहिर तौर पर भारत की विविधता के समक्ष एक खतरा उत्पन्न होगा । इसी खतरे को ध्यान में रखते हुए साल 2018 में विधि आयोग नेअपनी एक रिपोर्ट में UCC यानी Uniform Civil Code पूर्णता नकार दिया था।

Uniform Civil Code को लेकर सरकार क्या मानती हैं?

 इस संबंध में भारत सरकार के दो पक्ष रहे हैं

1. साल 1991-2014 विपक्ष मुख्य तौर हस्तक्षेप ना करने का था।

इस पूरे निर्णय के दौरान भारत सरकार ने UCC को लेकर हस्तक्षेप न करने का निर्णय लिया था। भारत सरकार ने यह स्वीकार किया था यदि सरकार द्वारा UCC लाया जाता है तो जाहिर तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के पर्सनल लॉ में बदलाव करने होंगे।

ऐसे में सरकार की नीतियां ये थी की, सरकार अल्पसंख्यक समुदाय के कानूनों में बदलाव तब तक नहीं करेगी जब तक ऐसे बदलाव की शुरुआत समुदाय के बीच से ना हो। यह नीति साल 1991 से 2014 तक देखने को मिली।

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2. साल 2014 में सरकार की नीति में कुछ बदलाव देखने को मिलता हैं।

साल 2014 के बाद भारत सरकार की नीति हितधारको परामर्श करने पर अधिक जोर देने लगती हैं इस पूरी नीति के तहत सरकार ने Uniform Civil Code यानी UCC की आवश्यकता को स्वीकार किया।

यानी कि भारत सरकार ने यह स्वीकार किया कि मौजूदा समय में भारत को एक Uniform Civil Code की जरूरत है और इस पूरी नीति के तहत अल्पसंख्यको के साथ परामर्श  पर और ज्यादा जोर दिया गया।

इस नीति के हिस्से के तौर पर साल 2019 में भारत सरकार ने ये सांसद को यह बताया था की सरकार नें 21वी विधि आयोग से समान नागरिक संहिता यानी Uniform Civil Code से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और इस संबंध में सिफारिश देने का आग्रह किया हैं।

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